1517 दिनों की जिद ने दिलाया इंसाफ: माटीपुत्र भू-विस्थापित किसान को मिली एसईसीएल में नौकरी, आंदोलन की ऐतिहासिक जीत






त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****// कोरबा सार्वजनिक क्षेत्र के महाउपक्रम कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी एसईसीएल बिलासपुर के अधीन कोरबा-पश्चिम क्षेत्र की कोयला परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण के बदले रोजगार की मांग को लेकर वर्षों से संघर्षरत माटीपुत्र भू-विस्थापित किसानों के आंदोलन को आखिरकार बड़ी सफलता हाथ लगी है। 1517 दिनों तक चले निरंतर आंदोलन के बाद एक भू-विस्थापित किसान को नौकरी मिलने से यह संघर्ष अब एक मिसाल बन गया है।
छत्तीसगढ़ किसान सभा (सीजीकेएस) एवं भू-विस्थापित रोजगार एकता संघ के संयुक्त आंदोलन और दबाव के चलते एसईसीएल बिलासपुर मुख्यालय ने पुराने और लंबे समय से लंबित रोजगार प्रकरण में स्वीकृति प्रदान की। इसके पश्चात कुसमुंडा कोयला परियोजना के महाप्रबंधक सचिन तानाजी पाटिल ने प्रभावित किसान रघुनंदन यादव को नियुक्ति पत्र सौंपकर उन्हें एसईसीएल परिवार में शामिल किया।
नियुक्ति पत्र प्रदान करते हुए महाप्रबंधक सचिन तानाजी पाटिल ने रघुनंदन यादव को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जिन भू-विस्थापित किसानों की भूमि अधिग्रहित की गई है, उन्हें नियमानुसार रोजगार देने की प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी। इस अवसर पर कुसमुंडा परियोजना के एपीएम, भू-राजस्व अधिकारी सहित अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे।
रोजगार आदेश की सूचना मिलते ही आंदोलन स्थल और जीएम कार्यालय के समक्ष खुशी की लहर दौड़ गई। छत्तीसगढ़ किसान सभा एवं भू-विस्थापित किसानों ने मिठाइयां बांटकर इस उपलब्धि का जश्न मनाया। आंदोलनकारियों ने इसे वर्षों से चले आ रहे संघर्ष की बड़ी और निर्णायक जीत बताते हुए कहा कि जब तक भूमि अधिग्रहण से प्रभावित सभी परिवारों को उनका हक यानी रोजगार नहीं मिल जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
गौरतलब है कि कुसमुंडा कोयला खदान के विस्तार हेतु वर्ष 1978 से 2004 के बीच जरहा जेल, बरपाली, दुरपा, खम्हरिया, मनगांव, बरमपुर, दुल्लापुर, जटराज, सोनपुरी, बरकुटा, गेवरा, भैसमा सहित कई गांवों में बड़े पैमाने पर किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई थी। उस समय एसईसीएल की नीति जमीन के बदले रोजगार देने की थी, लेकिन बाद में नीति में बदलाव कर न्यूनतम दो एकड़ भूमि पर एक रोजगार का प्रावधान कर दिया गया, जिससे बड़ी संख्या में किसान रोजगार से वंचित रह गए।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश संयुक्त सचिव प्रशांत झा ने कहा कि जिन किसानों की जमीन एसईसीएल द्वारा अधिग्रहित की गई है, उन्हें स्थायी रोजगार मिलना चाहिए, क्योंकि भूमि ही किसानों की आजीविका का एकमात्र साधन है। उन्होंने इसे भू-विस्थापित किसानों के संघर्ष की जीत बताते हुए कहा कि आने वाले दिनों में सभी प्रभावित खातेदारों को रोजगार दिलाने के लिए आंदोलन को और तेज किया जाएगा।
भू-विस्थापित रोजगार एकता संघ के रेशम यादव एवं दामोदर श्याम ने कहा कि पुराने और लंबित मामलों में रोजगार का आदेश जारी होना आंदोलन के लिए नई ऊर्जा का संचार है। इससे अन्य विस्थापित परिवारों में भी उम्मीद जगी है कि संगठित संघर्ष से ही उन्हें उनका अधिकार मिलेगा।
नियुक्ति पत्र प्राप्त करने वाले रघुनंदन यादव ने भावुक होते हुए बताया कि वर्ष 1988 में उनकी जमीन अधिग्रहित की गई थी। इसके बाद उन्होंने वर्षों तक रोजगार के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाए, लेकिन हर बार निराशा हाथ लगी। छत्तीसगढ़ किसान सभा के मार्गदर्शन में 1517 दिनों तक चले संघर्ष के बाद उन्हें रोजगार मिला, जिसे उन्होंने अपने जीवन की सबसे बड़ी जीत बताया।
यह मामला न केवल एक किसान की जीत है, बल्कि कोरबा क्षेत्र के हजारों भू-विस्थापित किसानों के लिए संघर्ष, धैर्य और एकजुटता से अधिकार पाने की प्रेरणादायक कहानी बन गया





