“वंदना पावर प्लांट में बुझी उम्मीदों की लौ, भू-विस्थापितों ने मांगी अधिग्रहीत जमीन की वापसी”




त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/कोरबा। कटघोरा मार्ग के अंतर्गत नगर पंचायत छुरीकला और आसपास के ग्रामों में वंदना पावर प्लांट के नाम पर वर्ष 2008-09 में बड़े पैमाने पर अधिग्रहित की गई उपजाऊ जमीन अब वर्षों से बंजर पड़ी है। प्लांट शुरू होने से पहले ही बंद हो गया, जिससे क्षेत्र के सैकड़ों भू-विस्थापित परिवारों की उम्मीदें चकनाचूर हो गईं। अब ग्रामीण अपनी अधिग्रहित जमीन की वापसी की मांग को लेकर आंदोलन की राह पर हैं और सरकार से न्याय की आस लगाए बैठे हैं।
जानकारी के अनुसार, वंदना पावर लिमिटेड द्वारा 540 मेगावाट क्षमता का पावर प्लांट लगाने के लिए छुरी नगर, सलोरा, गांगपुर, दर्राभाठा, बिसनपुर जैसे गांवों की लगभग 260.899 हेक्टेयर उपजाऊ कृषि भूमि अधिग्रहित की गई थी। ग्रामीणों को उचित मुआवज़ा, नौकरी और अन्य सुविधाओं का वादा किया गया था, लेकिन अधिग्रहण के बाद न तो वादे पूरी तरह निभाए गए और न ही प्लांट शुरू हो सका।
ग्रामीणों का आरोप है कि अधिग्रहण में दलालों की भूमिका प्रमुख रही और अधिकांश भू-विस्थापितों को बहुत ही कम मुआवजा मिला। थोड़े समय के लिए प्लांट निर्माण कार्य में कुछ लोगों को ठेका श्रमिक के रूप में लगाया गया, लेकिन बाद में उन्हें भी हटा दिया गया। जिन परिवारों के सदस्य स्थायी नौकरी में रखे गए थे, उन्हें भी बर्खास्त कर दिया गया। इससे विस्थापित परिवारों की आजीविका पर संकट गहरा गया है।
स्थिति तब और गंभीर हो गई जब पावर प्लांट पर लिए गए बैंक ऋण का भुगतान समय पर न होने से बैंक ने प्लांट पर सील लगा दी और मशीनरी की नीलामी कर दी गई। नीलामी के बाद खरीदार प्लांट से यंत्र निकालकर ले गए, जिससे अब यह स्थान वीरान पड़ा है। भू-विस्थापितों का कहना है कि अब उनकी जमीन पहले जैसी समतल हो गई है, लेकिन उनके पास खेती करने के लिए जमीन नहीं बची।
भू-विस्थापितों का यह भी कहना है कि उन्हें आश्वासन दिया गया था कि अधिग्रहित भूमि पर उद्योग स्थापित किया जाएगा और उन्हें रोजगार मिलेगा, लेकिन प्रबंधन को जो पांच साल की समय-सीमा दी गई थी, उसमें प्लांट चालू नहीं किया गया। नियमानुसार, यदि तय अवधि में परियोजना शुरू नहीं होती है, तो अधिग्रहण की गई जमीन भू-स्वामियों को वापस की जानी चाहिए।
इस संबंध में भू-विस्थापितों ने हाल ही में आयोजित सुशासन तिहार शिविर में प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है और पुनः भूमि वापसी की मांग की है। भू-विस्थापित किसानों ने स्पष्ट किया है कि यह जमीन पूरी तरह उपजाऊ थी, जहां वे वर्षों से धान की खेती करते आ रहे थे। अब वे चाहते हैं कि सरकार कानूनी प्रावधानों के तहत उनकी जमीन लौटाए, ताकि वे फिर से अपनी पुरानी ज़िंदगी को संवार सकें।
वर्तमान में यह मामला स्थानीय राजनीति और प्रशासन के समक्ष एक बड़ा सामाजिक और आर्थिक मुद्दा बन गया है, जिससे निपटने के लिए सरकार को जल्द निर्णायक कदम उठाने की ज़रूरत है।
