खल्लारी वन क्षेत्र में करंट से तेंदुआ और वन भैंसे की मौत: वन विभाग की लापरवाही से जंगल बनते जा रहे शिकारगाह, जिम्मेदार कौन?


त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा महासमुंद ****/ जिले के खल्लारी वन क्षेत्र में एक बार फिर वन्यजीवों के प्रति क्रूरता और वन विभाग की गंभीर लापरवाही का खौफनाक चेहरा सामने आया है। नेशनल हाईवे-353 के समीप मातेश्वरी पहाड़ी के नीचे स्थित वन कक्ष क्रमांक 182 में दुर्लभ तेंदुए और छत्तीसगढ़ के राज्य पशु वन भैंसे की करंट लगाकर हत्या कर दी गई। इस दोहरे वन्य-अपराध ने न केवल पर्यावरण प्रेमियों को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि वन विभाग की कार्यप्रणाली और निगरानी तंत्र पर भी तीखे सवाल खड़े कर दिए हैं।
जघन्य शिकार या विभागीय लापरवाही?
ग्रामीणों ने सुबह जब इन दोनों मृत वन्यजीवों को देखा तो पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई। सूचना मिलने पर वन विभाग की टीम मौके पर पहुँची और शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम हेतु भेजा गया। प्रारंभिक जांच में स्पष्ट हुआ है कि दोनों की मौत जानबूझकर बिछाए गए बिजली के करंट से हुई है। यह कोई सामान्य दुर्घटना नहीं बल्कि एक सुनियोजित और क्रूर शिकार की साजिश थी।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की खुली धज्जियां :
तेंदुआ भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत पूर्णतः संरक्षित प्रजाति है और वन भैंसा छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु है। इनकी हत्या केवल नैतिक या पारिस्थितिकीय अपराध नहीं, बल्कि स्पष्ट रूप से कानूनन दंडनीय कृत्य है। बार-बार ऐसी घटनाओं के घटित होने के बावजूद विभागीय निष्क्रियता इस अपराध को कहीं न कहीं प्रोत्साहन दे रही है।
पूर्व घटनाओं से नहीं ली सबक :
यह घटना पहली नहीं है। इससे पहले भी खल्लारी वन क्षेत्र में हिरण, जंगली सुअर जैसे जानवरों की करंट से मौत की घटनाएं हो चुकी हैं। बावजूद इसके, न तो निगरानी प्रणाली में सुधार हुआ, न ही दोषियों को पकड़ने के प्रयासों में गंभीरता दिखाई गई। शिकारी बेखौफ हैं और विभाग गहरी नींद में।
जन आक्रोश और पर्यावरण कार्यकर्ताओं की माँग :
स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस घटना पर गहरा आक्रोश जताया है। उनका कहना है कि अब केवल “औपचारिक खानापूर्ति” नहीं, बल्कि अपराधियों को कड़ी सजा दी जानी
