माँ हसदेव तट पर वैदिक आस्था का आलोक — श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ में वेदी पूजन व हवन, 5 नवम्बर को देव दीपावली पर होगी भव्य महाआरती






त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/ माँ हसदेव नदी तट स्थित सर्वमंगला घाट इन दिनों वैदिक मंत्रोच्चार, आस्था और भक्ति से गुंजायमान है। नमामि हसदेव सेवा समिति द्वारा आयोजित पांच कुण्डीय श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ एवं हसदेव महाआरती के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में पहुँचकर वेदी पूजन एवं हवन में सहभागिता निभाई। रविवार सुबह 9 बजे से दोपहर 2 बजे तक यजमानों ने वैदिक परंपरा के अनुरूप मंत्रोच्चार के बीच हवन किया और माँ हसदेव से सुख-समृद्धि की कामना की।

हवन के दौरान वातावरण “स्वाहा… स्वाहा…” के पावन स्वर से गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने वेदी की परिक्रमा कर पुण्यलाभ अर्जित किया। घाट पर दीपों की ज्योति और वैदिक अनुष्ठान का संयोजन भक्तिभाव का अद्भुत वातावरण निर्मित कर रहा है।
तीसरे दिन होंगे कथा, भजन-कीर्तन और दीपदान के कार्यक्रम
आयोजन समिति से मिली जानकारी के अनुसार 3 नवंबर, सोमवार को प्रातः 9 बजे से वैदिक शुभ यज्ञ और हवन का आयोजन होगा। दोपहर 3 से 5 बजे तक कार्तिक माहात्म्य कथा श्रवण एवं भजन-कीर्तन कार्यक्रम रखा गया है। सायं दीपदान कर श्रद्धालु माँ हसदेव से अपने परिवार के मंगल की कामना करेंगे।
5 नवम्बर को होगी देव दीपावली की भव्य महाआरती
कार्यक्रम की श्रृंखला का मुख्य आकर्षण देव दीपावली के अवसर पर 5 नवंबर, बुधवार (कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा) को होगा। इस दिन प्रातः 9 बजे हवन पूर्णाहुति, सहस्त्रधारा, चुनरी यात्रा तथा महाआरती का दिव्य आयोजन निर्धारित है। इस दौरान माँ हसदेव मैया को चुनरी चढ़ाई जाएगी।
सायं 5 बजे से सर्वमंगला घाट को हजारों दीपों से सजाया जाएगा, जब पूरा तट दीपमालाओं से आलोकित होगा। श्रद्धालु दीपदान कर अपनी श्रद्धा अर्पित करेंगे।
आयोजन की तैयारियाँ अंतिम चरण में
नमामि हसदेव सेवा समिति ने बताया कि श्रद्धालुओं की सुविधा और कार्यक्रम की भव्यता को ध्यान में रखते हुए व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। घाट परिसर की सजावट, सुरक्षा एवं प्रकाश व्यवस्था का कार्य पूरा कर लिया गया है। समिति के सदस्यों ने सभी भक्तजनों से माँ हसदेव की महाआरती में अधिकाधिक संख्या में सम्मिलित होने की अपील की है।
माँ हसदेव तट पर जारी यह श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है, बल्कि पर्यावरण, संस्कृति और आस्था के समन्वय का जीवंत प्रतीक भी बन गया है।





