भगवान श्रीकृष्ण की छठी पूजा: अभिषेक, भोग और विशेष विधि-विधान






त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा। जन्माष्टमी के छठे दिन श्रीकृष्ण की छठी पूजा विशेष श्रद्धा और भक्ति भाव से की जाती है। यह दिन बालकृष्ण के जन्मोत्सव के बाद उनके पहले संस्कार के रूप में माना जाता है। इस अवसर पर भगवान को शिशु स्वरूप मानकर उनका अभिषेक, शृंगार और विविध प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। परंपरा अनुसार भक्तगण अपने घरों और मंदिरों में यह पूजा करते हैं।

कृष्ण भगवान का अभिषेक (नहलाना)
- अभिषेक की सामग्री – पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर), गंगाजल, सुगंधित जल, केसर मिश्रित दूध।
- विधि –
पहले श्रीकृष्ण की मूर्ति या बालगोपाल स्वरूप को गंगाजल से स्नान कराते हैं।
इसके बाद क्रमशः दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से पंचामृत स्नान कराते हैं।
पुनः गंगाजल से शुद्ध स्नान कराकर केसर मिले दूध से हल्का अभिषेक किया जाता है।
अंत में स्वच्छ जल से स्नान कराकर उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
शृंगार और सजावट
बालकृष्ण को पीताम्बर, फूलों की माला और मोर मुकुट पहनाया जाता है।
छोटे पालने को सजाया जाता है और उसमें बालकृष्ण को विराजमान किया जाता है।
धूप, दीप और पुष्प अर्पण किए जाते हैं।
भोग अर्पण
कृष्ण छठी पर विशेष प्रकार के भोग लगाए जाते हैं –
- माखन-मिश्री (कृष्ण का प्रिय भोग)
- खीर
- पूड़ी-हलवा
- पंजीरी
- फल और मेवे
- लड्डू, पेड़ा, रसगुल्ला आदि मिठाइयाँ
- पूजा की विशेषता
इस दिन छठी माता और नन्द-यशोदा की भी पूजा का महत्व है।
घर के बड़े बुजुर्ग बच्चों को आशीर्वाद देते हैं और परिवार में मंगल गीत गाए जाते हैं।
कई जगहों पर झांकी और भजन-कीर्तन का भी आयोजन होता है।
भगवान कृष्ण की छठी पूजा में उनका शिशु स्वरूप प्रमुख रहता है। भक्त इस दिन उन्हें स्नेह और वात्सल्य भाव से नहलाकर, सजाकर और भोग अर्पित कर पूजन करते हैं। यह पर्व संपूर्ण परिवार के स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है।





