संविधान दिवस पर राष्ट्र को एकता, अधिकार और कर्तव्य का संदेश — “राष्ट्र शरीर है तो संविधान उसकी आत्मा”






त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा राहुल दंतेवाड़ा ****/रायपुर।
संविधान दिवस के पावन अवसर पर पूरे देश में भारतीय लोकतंत्र के इस महान दस्तावेज़ को नमन किया गया। भारतवासियों ने संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि, त्याग, समर्पण और राष्ट्रनिर्माण की अद्भुत भावना को स्मरण करते हुए उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।
देशभर में आयोजित कार्यक्रमों में यह संदेश प्रमुखता से दिया गया कि—
“हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान”
और इसके आदर्शों को अपने व्यवहार और जीवन में उतारना ही सच्ची देशभक्ति है।
इस अवसर पर नागरिकों को यह भी स्मरण कराया गया कि राष्ट्र का शरीर संविधान की आत्मा से ही जीवंत है, इसलिए संविधान की रक्षा तथा उसके मूल्यों का पालन करना प्रत्येक नागरिक की सर्वोच्च जिम्मेदारी है।
भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों का संक्षिप्त परिचय
आज संविधान दिवस के अवसर पर लोगों ने अपने छह मौलिक अधिकारों की जानकारी को ताज़ा किया, जो भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ हैं—
1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14–18)
सभी नागरिक कानून की नज़र में समान हैं। जाति, धर्म, लिंग, भाषा या जन्मस्थान के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव प्रतिबंधित है। अस्पृश्यता का उन्मूलन और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर भी इसमें शामिल हैं।
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19–22)
विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा, संघ बनाने, देश में कहीं भी रहने-घूमने और किसी भी व्यवसाय को अपनाने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह नागरिक स्वातंत्र्यों का सबसे व्यापक अधिकार है।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23–24)
मानव तस्करी, जबरन श्रम तथा 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक स्थानों पर कार्य पर लगाने पर पूर्ण प्रतिबंध सुनिश्चित करता है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25–28)
हर नागरिक अपने धर्म को मानने, उसका अभ्यास करने और प्रचार करने के लिए स्वतंत्र है।
5. सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29–30)
अल्पसंख्यक समुदाय अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित कर सकते हैं। वे अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित एवं संचालित करने के भी पूर्ण अधिकार रखते हैं।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
यह अधिकार नागरिक को सर्वोच्च न्यायालय तक जाने का अधिकार देता है, यदि उसके मूल अधिकारों का हनन हुआ हो।
इसी कारण इसे संविधान का हृदय और आत्मा कहा गया है।
स्व–मूल्यांकन और संविधान के प्रति संवेदनशीलता का संकल्प
संविधान दिवस पर यह संदेश भी प्रमुखता से सामने आया कि—
हम सभी को यह आत्मचिंतन करना चाहिए कि क्या वास्तव में हम संविधान के सिद्धांतों का पालन पूरे मन से कर रहे हैं?
इतिहास बताता है कि संविधान निर्माताओं ने दिन-रात अथक परिश्रम कर एक ऐसा मजबूत, सर्वसमावेशी और निष्पक्ष संविधान तैयार किया, जो सभी को समान अवसर देता है और भारत की विविधता को शक्ति प्रदान करता है।
प्रवक्ता और सामाजिक संगठनों ने नागरिकों से यह आह्वान किया कि—
देश के सौहार्दपूर्ण वातावरण को बनाए रखना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
संविधान विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले किसी भी दल या व्यक्ति को लोकतंत्र का हितैषी नहीं माना जा सकता।
भारत की अखंडता, एकता और सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए सही नेतृत्व का चुनाव करना लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए आवश्यक है।
नागरिकों की जिम्मेदारी : “यही है हमारा राष्ट्रीय धर्म”
कार्यक्रमों में यह भी कहा गया कि—
भारत की विविध संस्कृति, धर्म और समुदायों की एकता को बनाए रखने के लिए प्रत्येक नागरिक को अपने मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अपने मौलिक कर्तव्यों का भी निस्वार्थ भाव से पालन करना चाहिए।
जात-पात, धर्म, भाषा, क्षेत्र और किसी भी प्रकार के पक्षपात से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाना ही सच्चे अर्थों में भारतीय नागरिक का धर्म है।
संविधान दिवस पर लिया गया संकल्प
आज देशवासियों ने एक स्वर में यह संकल्प लिया—
कि हम अपने पवित्र संविधान की मूल प्रस्तावना को हृदय से आत्मसात करेंगे।
लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय के मूल्यों को अपने जीवन में उतारेंगे।
एक मजबूत, एकजुट और विकसित भारत के निर्माण में योगदान देंगे।
जय हिन्द 🇮🇳
जय भारत 🇮🇳🇮🇳🇮🇳
जय संविधान 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳





