छत्तीसगढ़ी संस्कृति से सराबोर हुआ हरेली तिहार – पारंपरिक खेलों में उमड़ा जनसैलाब, गूंजा गांव-खेती का गौरवगान




त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/ कोरबा, दादर | छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोकपरंपरा, कृषि संस्कृति और ग्रामीण जीवन के गौरव को समर्पित हरेली तिहार का रंगारंग और भव्य आयोजन दादर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। इस आयोजन ने छत्तीसगढ़ी संस्कृति की गहराई और लोकमानस से जुड़े मूल्यों को सजीव कर दिया।
पर्व की शुरुआत परंपरागत रीति से की गई, जहां हल, कुदाली, टंगिया, बैलगाड़ी जैसे कृषि औजारों की विधिवत पूजा की गई। इस क्रम में कृषक संस्कृति को नमन करते हुए हरेली पर्व की मूल भावना—धरती, खेती और श्रम का सम्मान—प्रकट किया गया।
इसके पश्चात गेडी दौड़, टायर दौड़, नारियल फेंक, रस्साकशी जैसे विविध पारंपरिक खेलों का आयोजन किया गया। बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों तक ने उत्साह के साथ भाग लेकर आयोजन को जीवंतता प्रदान की। विशेष रूप से गेड़ी दौड़ प्रतियोगिता में आरती राठिया के विजेता बनने पर लोगों ने तालियों से स्वागत किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री एवं कोरबा विधायक श्री लखनलाल देवांगन ने कहा, “हरेली सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि हमारी मिट्टी, मेहनत और संस्कृति की आत्मा है। ऐसी परंपराएं हमारी सामाजिक जड़ों को मजबूत करती हैं।”
भाजपा जिला अध्यक्ष श्री गोपाल मोदी ने कहा, “हरेली तिहार हमारे जीवन मूल्यों और एकता की प्रतीक है। यह पर्व सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक चेतना और ग्रामीण ऊर्जा का उत्सव है।”
इस अवसर पर भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी एवं जनप्रतिनिधिगण मंच पर उपस्थित रहे—मंडल अध्यक्ष राजेश राठौर, सर्वमंगल नगर मंडल अध्यक्ष मनीष मिश्रा, वार्ड पार्षद सुनीता चौहान, पूर्व मंडल अध्यक्ष प्रकाश अग्रवाल, बलराम विश्वकर्मा, प्रताप सिंह कंवर, भाजपा जिला मीडिया सह प्रभारी पवन सिन्हा, लकी नंदा, अजय चंद्रा, मिलाप बैरेट, मंडल महामंत्री पुनिराम साहू, श्रीधर द्विवेदी, शिव जायसवाल, शक्ति दास, गुड़िया यादव, प्रीति चौहान, नीरज ठाकुर, रितेश साहू, मनीष राम पटेल, भरत सोनी, पंचराम राठिया, श्याम सुंदर देवांगन, उमाशंकर बरेठ, रवि राठौर, विकास चौहान, हेमंत चंद्र, अनिल दत्त, केया सेन गुप्ता, चंचल राठौर, गुलजार राजपूत, गिरधारी, लक्ष्मी प्रसाद यादव सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और ग्रामीण जन मौजूद रहे।
हरेली तिहार के इस आयोजन ने छत्तीसगढ़ी अस्मिता, लोक परंपराओं और सामुदायिक उत्सवों को एक सशक्त मंच प्रदान किया। पारंपरिक गीत-संगीत, खेल और आत्मीयता से भरपूर इस उत्सव ने यह संदेश दिया कि जब परंपराएं जीवित रहती हैं, तभी समाज जीवंत होता है।
