रेलवे विस्तार के नाम पर उजाड़ने की साजिश! फोकटपारा–इंद्रानगर बस्तीवासियों का उग्र चक्का जाम, शहर ठप, प्रशासन–रेलवे के खिलाफ फूटा आक्रोश






त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/ कोरबा रेलवे प्रबंधन द्वारा विस्तार कार्य के नाम पर वर्षों से बसी आबादी को उजाड़ने की कार्रवाई के विरोध में मंगलवार को कोरबा में जनाक्रोश फूट पड़ा। फोकटपारा एवं इंद्रानगर दुरपा रोड बस्ती के सैकड़ों महिला-पुरुषों ने पावर हाउस रोड ओवरब्रिज के नीचे चक्का जाम कर दिया, जिससे यातायात पूरी तरह प्रभावित हो गया। आक्रोशित लोगों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए एक भी मकान खाली नहीं किया जाएगा।
बताया गया कि करीब एक माह पूर्व रेलवे प्रबंधन द्वारा फोकटपारा एवं इंद्रानगर दुरपा रोड क्षेत्र की बस्ती में रहने वाले 200 से अधिक परिवारों को नोटिस जारी कर मकान खाली करने के निर्देश दिए गए थे, ताकि रेलवे विस्तार कार्य किया जा सके। अचानक मिले नोटिस से बस्तीवासियों में भय और असुरक्षा का माहौल बन गया।
बस्ती के लोगों ने पहले कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर ज्ञापन सौंपते हुए न्याय की गुहार लगाई थी, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकलने और रेलवे प्रबंधन के लगातार दबाव को देखते हुए लोगों का सब्र टूट गया। इसके बाद मजबूरन बस्तीवासियों ने सड़क पर उतरकर उग्र प्रदर्शन और चक्का जाम का रास्ता अपनाया।
प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वे दशकों से इसी स्थान पर रह रहे हैं, यहां उनके बच्चों की पढ़ाई, रोजगार और सामाजिक जीवन जुड़ा हुआ है। यदि रेलवे विस्तार करना चाहता है तो पहले शहर के भीतर ही सुरक्षित पुनर्वास (भू-विस्थापन/बसाहट) की व्यवस्था करे। बिना पुनर्वास के घर तोड़ना अमानवीय और अन्यायपूर्ण है।
चक्का जाम के दौरान नारेबाजी करते हुए लोगों ने रेलवे प्रबंधन और प्रशासन के खिलाफ तीखा विरोध दर्ज कराया। प्रदर्शन को वार्ड पार्षद तमेश अग्रवाल तथा नगर निगम सभापति नूतन सिंह ठाकुर का भी समर्थन मिला। दोनों जनप्रतिनिधियों ने मौके पर पहुंचकर बस्तीवासियों की मांग को जायज बताते हुए कहा कि
“रेलवे विस्तार जरूरी हो सकता है, लेकिन गरीबों को बेघर करना किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जाएगा। जब तक वैकल्पिक बसाहट नहीं मिलती, तब तक कोई विस्थापन नहीं होना चाहिए।”
चक्का जाम के चलते क्षेत्र में अफरा-तफरी का माहौल रहा, राहगीरों और वाहन चालकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। सूचना मिलने पर प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे और प्रदर्शनकारियों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन बस्तीवासी अपनी मांगों पर अड़े रहे।
प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि जल्द ही स्पष्ट पुनर्वास नीति और लिखित आश्वासन नहीं दिया गया, तो आंदोलन को और उग्र किया जाएगा। यह आंदोलन अब केवल एक बस्ती का नहीं, बल्कि शहर के गरीब और मध्यम वर्ग के अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है।
रेलवे विस्तार बनाम मानवता के इस टकराव ने प्रशासन के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—विकास पहले या विस्थापितों का भविष्य?





