**“क्षमा से जीवन में शांति, क्रोध से रोगों का जन्म” — मुनि श्री भावसागर जी महाराज 21 वर्षों बाद कोरबा में मुनि संघ का ऐतिहासिक मंगल प्रवेश, जैन समाज में उल्लास**






त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/ कोरबा। अहिंसा, क्षमा और आत्मशुद्धि के महान संदेश के साथ परम पूज्य महासमाधि धारक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित एवं परम पूज्य आचार्य श्री समयसागर जी महाराज की आज्ञानुवर्ती परंपरा के शिष्य मुनि श्री धर्मसागर जी महाराज एवं मुनि श्री भावसागर जी महाराज के पावन सानिध्य में अहिंसा रक्षा पदयात्रा निरंतर जारी है। इसी क्रम में दिनांक 6 दिसंबर 2025 को श्री दिगंबर जैन मंदिर, कोरबा (छत्तीसगढ़) में मुनि संघ का भव्य मंगल प्रवेश हुआ।
इस ऐतिहासिक अवसर पर नगर के विभिन्न मार्गों पर श्रद्धालुओं द्वारा पादप्रक्षालन, पुष्पवर्षा एवं स्वागत–अभिनंदन किया गया। जैन समाज सहित नगरवासियों ने अपार श्रद्धा और भक्तिभाव के साथ मुनि संघ का स्वागत किया।
इस पदयात्रा में नरेंद्र जैन (सिवनी, यात्रा प्रभारी), दीपक जैन, नमन जैन, रानु जैन नोहटा सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु सहभागी बने। उल्लेखनीय है कि यह पदविहार श्री सम्मेद शिखर जी की ओर अग्रसर है। वर्ष 2003 के बाद लगभग 21 वर्षों पश्चात मुनि संघ का कोरबा में आगमन हुआ है, जिसे लेकर संपूर्ण जैन समाज में अत्यंत हर्ष और उत्साह का वातावरण बना हुआ है। इस पदविहार में सिवनी, कटंगी, गुना एवं कोरबा के जैन समाज के अनेक श्रद्धालु अपनी श्रद्धा अर्पित कर रहे हैं।
धर्मसभा में मुनि श्री भावसागर जी महाराज का प्रेरक उपदेश
धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री भावसागर जी महाराज ने कहा—
“संसार में क्षमा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। सच्ची क्षमा वही है जिसमें स्वार्थ का कोई स्थान न हो। क्षमा मनुष्य को फूल जैसा कोमल बनाती है, जबकि क्रोध उसे भीतर से विषाक्त कर देता है।”
उन्होंने आगे कहा—
क्रोध की दोहरी तलवार सदैव मान–अभिमान के द्वार पर खड़ी रहती है।
वहीं क्षमा माँगनी चाहिए जहाँ मन नहीं मिलता, क्योंकि वही क्षमा का वास्तविक मूल्य है।
क्षमा न करने से मनुष्य तनावग्रस्त और अशांत हो जाता है।
भारत ऐसा राष्ट्र है जिसने शत्रु की भूलों को भी क्षमा किया है।
हमारे देश में युद्ध शौक से नहीं, बल्कि मजबूरी में लड़े जाते हैं।
महात्मा जी ने यह भी कहा कि—
“क्रोध से हृदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं, क्योंकि क्रोध के समय शरीर की ग्रंथियों से विषैला द्रव निकलकर पूरे शरीर में फैल जाता है।”
उन्होंने क्षमा को जीवन उत्थान का मार्ग, खुशहाली का खजाना, मोक्ष का द्वार, आत्मा का आनंद, महान तप और उच्च आचरण बताया और कहा—
“क्रोध को जीतने का एकमात्र उपाय क्षमा है, और क्षमा की कभी पराजय नहीं होती।”
आज के प्रतिस्पर्धा एवं तनावपूर्ण युग में जैन धर्म के सिद्धांतों को जीवन में अपनाकर व्यक्ति स्वयं का और राष्ट्र का निर्माण कैसे कर सकता है, इस विषय पर भी उन्होंने प्रेरणादायक मार्गदर्शन दिया।
जैन समाज कोरबा के लिए सौभाग्य का क्षण
जैन समाज कोरबा के अध्यक्ष डॉ. प्रदीप जैन ने इस अवसर पर कहा कि—
“लगभग 21 वर्षों बाद मुनि संघ का कोरबा आगमन हमारे समाज के लिए सौभाग्य का विषय है। गुरुदेव का आशीर्वाद एवं उनकी सेवा का अवसर मिलना हम सभी के लिए अत्यंत गौरव की बात है।”





