जवाली में आवारा मवेशियों से बिगड़ी ग्रामीण व्यवस्था: फसलें बर्बाद, हादसों का खतरा, चरवाहा योजना फिर से लागू करने की मांग




त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/ कटघोरा विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत जवाली में आवारा मवेशियों की समस्या लगातार गंभीर रूप लेती जा रही है। गांव में खुलेआम घूम रहे गाय-बैल, बछड़े व अन्य मवेशी जहां एक ओर किसानों की खून-पसीने से सींची फसलें तबाह कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सड़कों पर बढ़ते आवागमन के बीच दुर्घटनाओं का भी खतरा दिनों-दिन गहराता जा रहा है।
ग्रामीणों के अनुसार, ग्राम जवाली एक बड़ी बस्ती है जहां लगभग 400 से 500 पालतू पशु किसानों द्वारा पाले गए हैं, वहीं करीब 300 मवेशी बेखौफ सड़कों और खेतों में घूम रहे हैं। इस कारण कई बार सड़क दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें जान-माल का नुकसान भी हुआ है। सड़क किनारे दुकानें भी इन मवेशियों के कारण खतरे में हैं।
जून माह से शुरू हुए कृषि कार्य में अब तक लगभग 82 प्रतिशत फसल बुवाई, सियासी व निंदाई का कार्य पूर्ण हो चुका है और शेष कार्य भी एक सप्ताह के भीतर समाप्त होने की स्थिति में हैं। परंतु, आवारा मवेशियों के खुले में घूमने और कई पशुपालकों द्वारा जानबूझकर मवेशियों को छोड़ देने की वजह से फसलें बर्बाद हो रही हैं। इससे किसानों में चिंता और आक्रोश दोनों है।
बीते वर्ष भी इसी प्रकार की गंभीर समस्या आई थी, जिसके समाधान हेतु ग्राम पंचायत स्तर पर एक निर्णय लिया गया था। पंचायत के पूर्व प्रतिनिधियों ने ग्रामीणों की सहमति से चरवाहों की नियुक्ति के लिए सभी राशन कार्ड धारकों से 1 किलो चावल लेकर सामूहिक व्यवस्था बनाई थी। इसके तहत चरवाहाओं को ₹7500 प्रतिमाह मानदेय दिया गया था। यह राशि संबंधित पूर्व पंचों के पास जमा कर उनका भुगतान किया जाता था।
सरकार द्वारा चलाई गई “गोठान योजना” भी गांव में प्रभावी नहीं हो सकी। योजना के तहत गोठान क्षेत्र में पशुओं के रखरखाव हेतु तारघेरा, सीट, पंप, बिजली जैसी व्यवस्थाएं की गई थीं, परंतु वर्तमान में यह सभी सामग्री गायब हो चुकी है। आरोप है कि जिन्हें इनकी सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया था, उन्हीं के द्वारा यह सामान गायब कर दिया गया, जिससे शासन को नुकसान हुआ है। ग्रामीणों ने ऐसे जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्यवाही की मांग की है।
ग्राम सरपंच के अनुसार, कोटवार फागुन दास द्वारा अब तक 5 बार मुनादी कर पशुपालकों को सूचित किया जा चुका है कि वे अपने मवेशियों को खुले में न छोड़ें। साथ ही इस समस्या के निराकरण हेतु बार देवली, मौहरपारा सोमवारी बाजार और बाजारपारा शिशु मंदिर मंच में तीन बैठकें की जा चुकी हैं, जहां यह तय किया गया कि यदि कोई पशुपालक अपने मवेशियों को खुला छोड़ेगा तो उस पर एफआईआर दर्ज की जाएगी, जैसे शहरी क्षेत्रों में होता है।
इस वर्ष चरवाहाओं के लिए निर्धारित निजी शुल्क भी तय किया गया है:
गाय हेतु ₹1500/माह
बछड़ा-बछिया हेतु ₹1000/माह
बैल की जोड़ी हेतु ₹2500/माह
अब गांवों में खाली मैदान भी कम हो गए हैं, क्योंकि अधिकतर जमीनें अब खेती के उपयोग में लाई जा रही हैं।
ग्राम पंचायत द्वारा पुनः गोठान क्षेत्र में तारघेरा निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया है। ऐसे में अब यह देखना होगा कि पशुपालक अपनी जिम्मेदारी कितनी निभाते हैं और आवारा मवेशियों की इस पुरानी समस्या का समाधान कैसे होता है। ग्रामीणों की मांग है कि प्रशासन इस विषय में कठोर निर्णय लेकर नुकसान से बचाव करें।
