July 20, 2025

त्रिनेत्र टाईम्स

खबरें जरा हट के

माओवाद के साये से बाहर आया ईरकभट्टी, शिक्षा की गूंज से बच्चों की आंखों में लौटी उम्मीद

 


रायपुर, 04 जुलाई 2025/
  त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/ कभी वीरान पड़ा था यह स्कूल… दरवाजों पर ताले लटकते थे, कमरों में धूल और सन्नाटा पसरा रहता था। लेकिन आज वही नारायणपुर जिले का ईरकभट्टी गांव शिक्षा की मधुर स्वर लहरियों से गूंज उठा है। अबुझमाड़ के इस सुदूरवर्ती गांव में अब बच्चों की किलकारियां, क, ख, ग की ध्वनि और मासूम आंखों में भविष्य के सपने झिलमिलाने लगे हैं। इस बदलाव का श्रेय मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की सरकार की ‘नियद नेल्ला नार’ (आपका अच्छा गांव) योजना और युक्तियुक्तकरण की पहल को जाता है, जिसने माओवाद प्रभावित गांव में विकास की नई इबारत लिखी है।

बीते वर्षों में माओवादी गतिविधियों के कारण यहां के कई स्कूल बंद हो गए थे। बच्चों के हाथों से किताबें छूट गई थीं, आंगन सूने हो गए थे और लोग अनिश्चितता के साए में जी रहे थे। ईरकभट्टी भी ऐसा ही एक गांव था। यहां के निवासी श्री रामसाय काकड़ाम कहते हैं, “कभी सोचा भी नहीं था कि हमारे बच्चे स्कूल का मुंह देख पाएंगे। आज जब स्कूल खुल गया है और शिक्षकों की नियुक्ति हो गई है, तो लगता है मानो गांव में फिर से जान लौट आई हो।”

‘नियद नेल्ला नार’ योजना के तहत सुरक्षा कैंपों के पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों में योजनाओं को तेजी से लागू किया गया। ईरकभट्टी में सड़क, बिजली और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की वापसी हुई। वर्षों से बंद पड़ा प्राथमिक शाला अब बच्चों की पढ़ाई का केंद्र बन चुका है। शासन के युक्तियुक्तकरण प्रयासों के तहत यहां दो शिक्षक – श्री अशोक भगत और श्रीमती लीला नेताम की नियुक्ति की गई है।

शिक्षिका श्रीमती लीला नेताम कहती हैं, “शुरुआत में डर जरूर था, लेकिन बच्चों की मासूम मुस्कान और सीखने की ललक ने हर डर को मिटा दिया। अब हम हर दिन उन्हें नया सिखाने का प्रयास करते हैं। ये बच्चे बेहद प्रतिभाशाली हैं, बस इन्हें अवसर की जरूरत थी।”

अब स्कूल में दर्जन भर से अधिक बच्चे नियमित रूप से पढ़ाई कर रहे हैं। छोटे-छोटे हाथों में किताबें हैं और आंखों में सपने। पहले जहां लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने से डरते थे, अब वहीं माता-पिता उन्हें कंधों पर बिठाकर स्कूल छोड़ने आते हैं।

गांव की बुजुर्ग मंगतु बाई की आंखों में खुशी के आंसू हैं। वे भावुक होकर कहती हैं, “अब हमारी पोती भी पढ़-लिखकर अफसर बन सकती है। हमने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन भी देखेंगे।”

ईरकभट्टी की यह कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि उन हजारों गांवों की है जो कभी उपेक्षा और असुरक्षा के अंधकार में डूबे थे। लेकिन अब ‘नियद नेल्ला नार’ और युक्तियुक्तकरण जैसी योजनाएं वहां शिक्षा की लौ लेकर पहुंच रही हैं। यह लौ अब बुझने वाली नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © All rights reserved. | Newsphere by AF themes.