चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ: शक्ति उपासना के पहले दिन की धूम




त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/ चैत्र नवरात्रि की शुभ शुरुआत आज माता शैलपुत्री की पूजा के साथ हो गई है। देशभर के मंदिरों और घरों में भक्तिभाव का माहौल बना हुआ है। भक्तों ने विधिपूर्वक कलश स्थापना कर नवरात्रि के नौ दिनों तक चलने वाली साधना का संकल्प लिया। जगह-जगह भजन-कीर्तन और देवी स्तुतियों की गूंज से वातावरण भक्तिमय हो गया है।
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कलश स्थापना: नौ दिनों तक देवी की उपासना का आरंभ
नवरात्रि के पहले दिन घरों और मंदिरों में कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। यह कलश माँ दुर्गा का प्रतीक माना जाता है और नौ दिनों तक माता की कृपा बनी रहे, इसके लिए श्रद्धालु विशेष नियमों का पालन करते हैं।
कलश स्थापना की प्रक्रिया:
1. शुभ मुहूर्त में स्थापना:
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर साफ-सुथरे स्थान पर कलश स्थापित किया गया।
कलश में गंगाजल, आम के पत्ते, दूर्वा, सुपारी और सिक्के डाले गए।
कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल वस्त्र से लपेटकर माँ की कृपा का आह्वान किया गया।
2. अखंड ज्योति प्रज्वलन:
श्रद्धालु नौ दिनों तक अखंड दीप जलाकर माता की आराधना करते हैं।
मान्यता है कि यह ज्योति घर में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि को बनाए रखती है।
3. जौ (जवारे) बोना:
मिट्टी में जौ के बीज बोकर माता रानी की कृपा के प्रतीक रूप में उन्हें नौ दिनों तक सींचा जाता है।
जौ की बढ़ती लंबाई से शुभ फल प्राप्ति का संकेत माना जाता है।
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नवरात्रि के नौ दिनों में देवी स्वरूपों की आराधना
नवरात्रि के नौ दिन माता के विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए समर्पित होते हैं। प्रत्येक दिन विशेष पूजा और रंगों का महत्व बताया गया है।
1. पहला दिन – माँ शैलपुत्री:
पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता शैलपुत्री की पूजा होती है।
पूजा में सफेद फूल और घी का दीपक जलाने का महत्व है।
2. दूसरा दिन – माँ ब्रह्मचारिणी:
यह स्वरूप तपस्या और संयम का प्रतीक है।
इस दिन चीनी और पंचामृत का भोग लगाया जाता है।
3. तीसरा दिन – माँ चंद्रघंटा:
यह स्वरूप शांति और शक्ति का प्रतीक है।
माता को दूध और दूध से बनी मिठाइयों का भोग चढ़ाया जाता है।
4. चौथा दिन – माँ कूष्मांडा:
इस दिन माता को कद्दू (कुम्हड़ा) या मालपुए का भोग लगाया जाता है।
यह स्वरूप सृजन और ऊर्जा का प्रतीक है।
5. पांचवा दिन – माँ स्कंदमाता:
यह स्वरूप माँ-पुत्र के प्रेम को दर्शाता है।
पूजा में केले का भोग लगाया जाता है।
6. छठा दिन – माँ कात्यायनी:
माता को शृंगार की वस्तुएं अर्पित की जाती हैं।
पूजा में शहद का भोग लगाया जाता है।
7. सातवां दिन – माँ कालरात्रि:
यह स्वरूप तमोगुण का नाश करने वाला है।
गुड़ और काले तिल का भोग लगाने का महत्व है।
8. आठवां दिन – माँ महागौरी:
कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है।
माता को नारियल और हलवे-पूरी का भोग अर्पित किया जाता है।
9. नौवां दिन – माँ सिद्धिदात्री:
यह स्वरूप सिद्धि प्रदान करने वाला है।
माता को नौ प्रकार के अनाज और हलवे का भोग लगाया जाता है।
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नवरात्रि उत्सव और भक्तों की आस्था
देशभर में नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं ने व्रत रखकर विधिवत पूजा-अर्चना की। मंदिरों में सुबह से ही भक्तों की लंबी कतारें देखने को मिलीं। घर-घर में माता की चौकी सजाई गई और भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया।
विशेष आकर्षण:
वैष्णो देवी, अंबाजी, ज्वालामुखी, मैहर और कालीघाट मंदिर में भारी भीड़।
दिल्ली, वाराणसी, उज्जैन, लखनऊ में भव्य दुर्गा पूजा पंडाल सजाए गए।
विभिन्न राज्यों में गरबा और डांडिया की तैयारियां जोरों पर।
नवरात्रि का आध्यात्मिक संदेश
नवरात्रि केवल व्रत और पूजा का पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और आत्मसंयम का भी समय है। नौ दिनों तक भक्त नियमों का पालन करते हुए संयम, तप और साधना में लीन रहते हैं। माता रानी की कृपा सभी भक्तों पर बनी रहे, इसी प्रार्थना के साथ यह शुभ पर्व प्रारंभ हुआ है।
जय माता दी!
