स्वास्थ्य का ध्यान रखें: आश्विन (क्वांर) मास में डॉ. नागेंद्र नारायण शर्मा ने बताए खास खान-पान और जीवनशैली के उपाय






आश्विन (क्वांर) मास में करेले से बचें, गुड़ का करें अधिक सेवन – डॉ. नागेंद्र शर्मा की आयुर्वेदिक सलाह
त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/ कोरबा, 11 सितंबर 2025 – छत्तीसगढ़ प्रांत के प्रतिष्ठित आयुर्वेद चिकित्सक नाड़ीवैद्य डॉ. नागेंद्र नारायण शर्मा ने बताया कि आश्विन (क्वांर) मास का आरंभ 8 सितंबर 2025 से हो चुका है, जो 7 अक्टूबर 2025 तक चलेगा। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार इस माह में विशेष प्रकार के खान-पान और जीवनशैली का पालन करना स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है। डॉ. शर्मा ने बताया कि ऋतुचर्या यानी ऋतुनुसार आहार-विहार करने की परंपरा भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। इस परंपरा को अपनाकर हम रोगों से बच सकते हैं और दीर्घायु जीवन जी सकते हैं।
डॉ. शर्मा ने विस्तार से बताया कि आश्विन मास में बादल छट जाने से सूर्य अधिक चमकदार हो जाता है, जिससे पित्त दोष बढ़ने की संभावना रहती है। पित्त दोष के बढ़ने से त्वचा संबंधी रोग और पित्त जनित विकार उत्पन्न हो सकते हैं। अतः इस दौरान पित्त शामक, हल्के, मधुर व तिक्त रस वाले आहार का सेवन करना चाहिए। पित्त वर्धक तथा कड़वे, कसैले रस युक्त आहार से दूर रहना चाहिए। विशेष रूप से करेले का सेवन इस माह में नुकसानदायक है। इसके स्थान पर गुड़ का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा। छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा में भी कहा गया है:
“क्वांर करेला कार्तिक महि – मरही नही त परही सही”
जिसका अर्थ है कि आश्विन मास में करेला और कार्तिक मास में छाछ का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है।
✅ डॉ. शर्मा द्वारा सुझाया गया आहार –
स्वस्थ आहार: गुड़, जौ, ज्वार, चावल, दालें – मूंग, मोंठ, तुअर, मसूर, चना।
फल: मौसंबी, अनानास, बरसाती तरबूज, सफेद अनार, सीताफल, नारियल।
सब्जियां: परवल, तरोई, लौकी, कद्दू, पुदीना, चौलाई।
मसाले: काली मिर्च, हल्दी, जीरा, सूखा धनिया, मीठा नीम, इलायची, पतली दालचीनी।
❌ परहेज करने योग्य आहार –
करेला
बाजरा, गेहूं
उड़द दाल, कुलथी दाल
ककड़ी, बैंगन, गाजर, मूली, फूलगोभी, पत्तागोभी, पालक, चुकंदर, अदरक
शकरकंद, पपीता
अधिक तेल-मसाले वाला भोजन, बासी या देर से पचने वाला भारी भोजन।
🌞 जीवनशैली में ध्यान देने योग्य बातें –
दिन में सूर्य के प्रकाश में अधिक समय बिताएं।
धूप में टहलें लेकिन अत्यधिक समय न बिताएं।
दिन में आवश्यकता से अधिक भोजन न करें।
शरीर को हमेशा ढंक कर रखें।
हल्के गुनगुने पानी से स्नान करें।
डॉ. शर्मा ने कहा कि यदि हम इन बातों का पालन सावधानीपूर्वक करेंगे तो पित्त दोष से उत्पन्न होने वाले रोगों से बचाव संभव है। आयुर्वेदिक परंपरा के अनुसार ऋतुनुसार जीवनचर्या अपनाना हमारे स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम उपाय है।
सावधान रहें, स्वस्थ रहें, प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर स्वस्थ जीवन जिएं।





