छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर में हरेली तिहार की भव्य छटा, लोक कला मंच की प्रस्तुतियों और 21 वर्षों की सांस्कृतिक यात्रा का उत्सव




कोरबा, 24 जुलाई 2025।
त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ***/ छत्तीसगढ़ महतारी संस्कृति संवर्धन सेवा समिति के तत्वावधान में छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर परिसर में आज 21वां हरेली तिहार पूरे उत्साह, भव्यता और सांस्कृतिक गौरव के साथ मनाया गया। छत्तीसगढ़ के पहले और सबसे लोकसंलग्न पर्व हरेली को समर्पित यह आयोजन समिति की निरंतर 21 वर्षों की सांस्कृतिक सेवा और प्रतिबद्धता का प्रतीक रहा।
🌿 परंपराओं का सम्मान, लोकसंस्कृति का उत्सव
इस अवसर पर पारंपरिक छत्तीसगढ़ी खेलकूद प्रतियोगिताओं जैसे रस्सी खींच, गेड़ी दौड़, बाटी खेल, नारियल फेंक आदि का आयोजन किया गया, जिसमें युवाओं, महिलाओं और बच्चों ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की। आयोजन स्थल पारंपरिक छत्तीसगढ़ी साज-सज्जा और माहौल से सराबोर नजर आया।
🎭 लोक कला मंच की अद्भुत प्रस्तुति बनी मुख्य आकर्षण
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ लोक कला मंच द्वारा प्रस्तुत नाचा, करमा, डंडारी नृत्य एवं पंथी गायन की शानदार झांकी ने उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन प्रस्तुतियों ने कार्यक्रम की व्यापकता और सांस्कृतिक गहराई को और अधिक समृद्ध कर दिया।
👥 वरिष्ठ अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री जयसिंह अग्रवाल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने अपने संबोधन में समिति की 21 वर्षों की सतत सांस्कृतिक सेवा और छत्तीसगढ़ी अस्मिता को जीवंत रखने के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। साथ ही कहा कि “हरेली तिहार केवल परंपरा का उत्सव नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की आत्मा है।”
🔷 कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री मोहन सिंह प्रधान ने की। उन्होंने मंच से उपस्थित अपार जनसमूह और समर्थकों को संबोधित करते हुए समिति को लगातार मिल रहे जनसमर्थन और सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।
👣 समिति के सभी प्रकोष्ठों की सक्रिय भागीदारी
इस आयोजन में छत्तीसगढ़ महतारी संस्कृति संवर्धन सेवा समिति के सभी प्रकोष्ठों के सम्माननीय पदाधिकारीगण उपस्थित रहे, जिन्होंने कार्यक्रम की सफलता में अहम भूमिका निभाई। उनके संगठित प्रयासों और समर्पण से यह आयोजन सांस्कृतिक चेतना का एक सशक्त उदाहरण बनकर सामने आया।
📸 समापन और स्मरणीय क्षण
कार्यक्रम का समापन पारंपरिक गीतों के संग हुआ, जिसमें नागरिकों ने “छत्तीसगढ़ महतारी की जय” के उद्घोष के साथ आयोजन की भावना को अभिव्यक्त किया।
यह आयोजन न केवल छत्तीसगढ़ी परंपरा के संरक्षण का प्रमाण बना, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए लोकसंस्कृति को जीवंत बनाए रखने का संदेश भी छोड़ गया।
