महिला गोमती के धरने से हिली एसईसीएल कुसमुंडा, प्रबंधन में मची खलबली




मनगांव की जमीन और नौकरी में गड़बड़ी का आरोप, भू-विस्थापित महिला ने कहा- न्याय नहीं मिला तो लड़ाई होगी तेज
त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा ****/ कोरबा। एसईसीएल कुसमुंडा प्रबंधन के खिलाफ भू-विस्थापित महिला गोमती केंवट का विरोध अब प्रबंधन के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। सोमवार को मनगांव निवासी गोमती जब महाप्रबंधक कार्यालय के गेट पर धरने पर बैठ गई और तीन दिन वहीं डटे रहने की चेतावनी दे डाली तो अधिकारियों में खलबली मच गई। देर रात प्रबंधन ने मामले में जांच शुरू करने की बात कहकर अस्थायी राहत लेने की कोशिश की, लेकिन गोमती का कहना है कि अगर न्याय नहीं मिला तो वह आंदोलन को और उग्र करेगी।
जमीन के बदले नौकरी में गड़बड़ी का आरोप
गोमती केंवट का आरोप है कि कुसमुंडा परियोजना द्वारा अर्जित की गई ग्राम मनगांव की खसरा क्रमांक 398/2, 398/3, 418/2, 432, 434/3, 437, 438/2, 441/2 और 441/3 की भूमि उसके ससुर रमेश पुत्र सलिकराम की थी। लेकिन इस जमीन के बदले नौकरी किसी और को दे दी गई, जो अब भटगांव क्षेत्र में पदस्थ है। गोमती ने इस पूरे मामले को कूट रचना कर किया गया घोटाला करार दिया और इसकी उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
एसईसीएल ने जांच का हवाला देकर टालने की कोशिश की
धरना के दबाव में देर रात कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय से पत्र क्रमांक 1530 दिनांक 21-07-2025 जारी कर बताया गया कि गोमती की शिकायत पर कार्रवाई शुरू कर दी गई है। इसमें कहा गया कि यदि भटगांव क्षेत्र में पदस्थ प्रहलाद पुत्र रमेश त्यागपत्र या वीआरएस देते हैं, या उनकी प्रक्रिया चल रही है तो नियमानुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी। विभागीय जांच लंबित रहने तक देय भुगतान पर रोक भी लगाई जाएगी। साथ ही, जांच में तेजी लाने के लिए भू-राजस्व विभाग कुसमुंडा का एक अधिकारी भी भेजा जाएगा।
गोमती का एलान- अधिकार की लड़ाई अब रुकने वाली नहीं
हालांकि, गोमती का कहना है कि जांच का पत्र केवल उन्हें धरने से उठाने का बहाना है। उन्होंने कहा कि भू-विस्थापितों के अधिकारों का लंबे समय से हनन किया जा रहा है और एसईसीएल प्रबंधन जिम्मेदारों को बचाने में जुटा है। “यह केवल मेरी नहीं, सभी भू-विस्थापितों की लड़ाई है। अगर इस बार न्याय नहीं मिला तो यह आंदोलन पूरे क्षेत्र में फैलाया जाएगा,” गोमती ने चेतावनी दी।
एसईसीएल पर उठे सवाल
यह पहला मौका नहीं है जब कुसमुंडा परियोजना पर भू-विस्थापितों के अधिकार छीनने और अनियमितता के आरोप लगे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण के बाद रोजगार देने के वादे कागजों तक ही सीमित रह गए हैं। गोमती के धरने ने एक बार फिर एसईसीएल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अब देखना यह होगा कि एसईसीएल प्रबंधन इस विरोध को शांत करने के लिए ठोस कदम उठाता है या यह मामला एक बड़े जनआंदोलन का रूप ले लेता है।
