February 6, 2025

त्रिनेत्र टाईम्स

खबरें जरा हट के


* एसईसीएल अधिकारियों की भूमिका पर भी उठ रहे सवाल-“दान भेजने वाला भी दाता राम-पाने वाला भी दाता राम”
* किसने, कब और क्यों गाड़ा हैं सरकारी खूंटे के बगल में अपना खूंटा
त्रिनेत्र टाइम्स कोरबा  सार्वजनिक क्षेत्र के वृहद उपक्रम कोल् इंडिया के अधीन संचालित एसईसीएल बिलासपुर की कोरबा-पश्चिम क्षेत्र में स्थापित खुले मुहाने की गेवरा कोयला परियोजना अंतर्गत एसईसीएल की मेगा प्रोजेक्ट मानिकपुर परियोजना खदान के वैध साईडिंग से लग कर संचालित हो रही अवैध साईडिंग के मामले में 6 लोगों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ा दी है। सरगबुंदिया की तर्ज पर चल रहे इस अवैध साईडिंग पर अभी तक खनिज विभाग के अमले के कदम नहीं पड़े हैं जिससे यहां मौजूद कोयला के भंडार का आंकलन नहीं हो सका है। पुलिस स्तर पर लगभग 5 हजार टन कोयला यहां होना आंकलित है, जिसकी कीमत करोडो में आंकी जा रही हैं। पुलिस की कार्यवाही के बाद इस अवैध साईडिंग से कोयले की अफरा-तफरी का काम तो फिलहाल पुरी तरह से प्रभावित हैं, लेकिन इसके संरक्षको और संचालको तक पहुंच बनाने की कवायद जारी है।
इस बीच कोल एडजस्टमेंट के नाम पर काम कर रही तथाकथित कंपनी के उक्त अवैध कोल स्टाक में एकाएक आग लगने की घटना ने पूरे मामले को संदेहास्पद बना दिया है। कोल स्टाक में लगातार आग लगने से माना जा रहा है कि कोल स्टाक को घटाने का काम इसकी आड़ में हो रहा है। कोयला के अवैध स्टाक का मापन हुआ तो इतने बड़े पैमाने पर अवैध भंडारण होना और अफरा-तफरी से इसका परिवहन किया जाना, दोनों सूरतों में एसईसीएल भी सवालों के घेरे में आएगा कि इतनी बड़ी मात्रा में उसके खदान से ओवरलोड कोयला आखिर क्यों और कैसे भेजा जाता रहा ? खदान से मालगाडिय़ों के जरिए भेजे जाने वाले कोयला की ओवरलोडिंग को एडजस्ट कराने के बाद आखिर अतिरिक्त कोयला की वापसी एसईसीएल क्यों नहीं कराता रहा ? दूसरी बड़ा सवाल रेलवे के क्षेत्र में अवैध साईडिंग के संचालन पर आखिरकार उसकी नजर क्यों और कैसे नहीं पड़ी ? रेलवे की जमीन पर यह अवैध कारोबार सरगबुंदिया में भी फलता-फूलता रहा और मानिकपुर में भी यही ढर्रा चल रहा हैं। रेलवे पुलिस के खुफिया तंत्र/मुखबिर भी आखिर क्यों कर अनजान रहे ? सूत्र बताते हैं कि एसईसीएल के चुनिन्दा अधिकारियों को ओवरलोड कोयला भेजने और एडजस्टमेंट के नाम पर कोयला निकाल कर बेचने के खेल की पूरी जानकारी है और उन्हें एक निर्धारित नजाराना भी मिलता रहा है। पुलिस ने एसईसीएल व रेलवे को दायरे में लेकर सवाल किया है कि आखिर ये कोयला किसका है ? मौखिक तौर पर दोनों ने कोयले का भंडारण अपना होने से इंकार किया है।
* पुलिस की जांच पहुंची कहां तक
पुलिस ने इस मामले की जड़ तक जाने का मन तो बना लिया है लेकिन क्या वह जड़ खोद पाएगी, इस पर संशय बना हुआ है। इसके पहले भी सरगबुंदिया साईडिंग का मामला ठण्डे बस्ते में जा चुका हैं। माना जा रहा हैं की अगर जांच निष्पक्ष और निर्भीक हुई तो इसके तार रायपुर से लेकर नागपुर तक जुड़े मिलेंगे और एक बड़ा घोटाला भी उजागर होने की उम्मीद जताई जा रही हैं। केन्द्रीय एजेंसी से इस घोटाले की जांच कराने की जरूरत भी है ताकि एसईसीएल भी इस जांच के दायरे में आ सके।
* खदान के भीतर डीजल चोरी जोरों पर
बताया जा रहा हैं की एसईसीएल के कुछ अधिकारियों की जानकारी और संरक्षण में खदान के भीतर संचालित एसईसीएल की बड़ी-बड़ी मशीनों से सैकड़ों ही नहीं बल्कि हजारों लीटर डीजल की चोरी हो रही है। खदान से बाहर यह मामला निकलने पर और मुखबिर की मेहरबानी होने पर पुलिस धर-पकड़ कर पाती है लेकिन इसके विपरीत खदान के भीतर ही मशीनों से डीजल चोरी कर चुनिंदा ट्रांसपोर्टरों के वाहनों में इसे खपाया जा रहा है। चंद अधिकारी कुछ ट्रांसपोर्टरों व ठेका कंपनियों के लोगों से मिलकर एसईसीएल को लाखों-करोड़ों की चपत डीजल आपूर्ति के मामले में लगा रहे हैं। चूंकि भीतर ही भीतर चोरी हो रही है इसलिए सुरक्षा में लगी कंपनियों को भी इन सबसे वास्ता नहीं रहता। इन्ही सब गतिविधीयो के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम लाभजनक परिणामो पर पहुंचने के बावजूद भी उसके लाभ से वंचित हो जाते हैं, और यहाँ भी स्थिति लगभग वही हो जाती हैं “दान भेजने वाला भी दाता राम-पाने वाला भी दाता राम”

 

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