July 22, 2025

त्रिनेत्र टाईम्स

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कोरबा  आजकल सभी नौनिहालों पर बस्तों का बोझ बढने लगा है। उनकी उम्र से आधा बैग का बोझ उनकी पीठ पर रहता है। 6 से 8 किलो तक वजन लाद कर बच्चे स्कूल जा रहे हैं। जितना बड़ा स्कूल उतना ही बड़ा स्कूल का बैग। पुस्तक दुकानों व स्कूलों के बीच कमीशन के खेल ने बच्चों का बोझ बढ़ा दिया है। संबंधित पब्लिकेशन की किताबें खरीदने पर एक तय कमीशन तक की सौदेबाजी भी होती है।


अभिभावकों को एक तयशुदा ही दुकान से किताबें, यूनीफॉर्म, जुते, खरीदने को कहा जाता है। हर क्लास के लिए बंडल पहले ही तैयार रखा जाता है। इनके दाम बाजार से बेहद ज्यादा होते हैं। इस बंडल में स्कूल के लिए अलग व घर के लिए अलग किताब व नोटबुक होते हैं। कई तो गैरजरूरी भी होते हैं। पर इन्हे खरीदना अभिभावकों की मजबूरी होती है। जिले के निजी स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों का वजन और बस्ते के वजन से उनकी तुलना करने पर बोझ पता चलता है। तीसरी से छठवीं तक के बच्चे अपने कुल वजन के 25-30 प्रतिशत से भी ज्यादा का हिस्सा हर रोज स्कूल बैग के रूप में ढोकर विद्यालय जा रहे हैं। एक ही क्लास की किताबों का वजन स्कूल बदलने पर अलग-अलग हो जाता है। हर स्कूल अपने अनुसार अपनी तयशुदा दुकानों से ही किताबें, यूनीफॉर्म, जुते व अन्य सामान खरीदवाते हैं। जिसके कारण हर स्कूल में कई तरह की किताबों से अध्यापन होता है।


चिकित्सक कहते हैं कि शरीर के वजन की तुलना में 10 से 15 फीसदी ही बैग का वजन होना चाहिए। जब एक भारी बैग को कंधे से गलत तरीके से उठाया जाता है तो कंधे पर बोझ बढ़ता है। इसलिए इस तरह के उपाय करना जरूरी है। एक हल्के वजन का बैग ही बच्चों के लिए होना चाहिए। बैग में कमर बेल्ट होनी चाहिए। इसका उपयोग करने से पूरे शरीर में अधिक समान रूप से वजन को वितरित करने में मदद करेगा।

 

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